Monday 15 April 2013

हमारी मौत के बाद तुम, देशी घी के दिये जला लेना..!

हमारी मौत पर तुम
देशी घी के दिये जला लेना,
तुम्हे मुक्ति मिल जाएगी
निर्भीक - निष्पक्ष कलम से
हमें मुक्ति मिल जायेगी
कर्मयोग के दायित्व से ।





 


मुझे ज्ञात है मित्र
तुम मेरे दोस्त हो,
पैसे की हवस ने तुम्हे
धृतराष्ट्र बना दिया है
सच्चा कलम का सिपाही
तेरे रास्ते में आ खड़ा हो गया है।

तुम लाचार हो, विवश हो, अंधे हो चुके हो..
पता नही तुम्हें, तुम क्या कर रहे हो,
अत्याचार, दोहन, शोषण, राष्ट्र के साथ..
गद्दारी, तुम्हारे खून में समां चूका है
वफ़ादारी, देश भक्ति, हमें विरासत में मिला है।

क्या करूं! ईश्वर ने हमें कलम दिया है,
न लिख पाया, सत्यमेव जयते तो,
रब को कैसे मुंह दिखाऊंगा,
तुम रूठ गये तो भी वक्त कट जायेगा,
ईश्वर रूठ गया तो, मुक्ति कैसे पाउँगा ।

हे मित्र! मुझे सत्य के पथ पर चलने दो
हमारी मौत के बाद तुम,
देशी घी के दिये जला लेना, देशी घी के दिये जला लेना .....!

No comments:

Post a Comment