Thursday 7 March 2013

उजाले और चकाचौंध के भीतर ख़ौफ़नाक अँधेरा...!

भारतीय सभ्यता में, अजंता और खजुराहो की गुफाएँ (आज भी बता रही हैं कि) औरत के शील को सार्वजनिक स्तर पर कितना मूल्यहीन व अपमानित किया गया, जिसको शताब्दियों से आज तक, शिल्पकला के नाम पर जनसाधारण की यौन-प्रवृत्ति के तुष्टिकरण और मनोरंजन का साधन बनने का ‘श्रेय’ प्राप्त है। ‘देवदासी’ की हैसियत से देवालयों (के पवित्र प्रांगणों) में भी उसका यौन शोषण हुआ। अपेक्षित पुत्र-प्राप्ति के लिए पत्नी का परपुरुषगमन (नियोग) जायज़ तथा प्रचलित था। ‘सती प्रथा’ के विरुद्ध वर्तमान में क़ानून बनाना पड़ा जिसका विरोध भी होता रहा है। वह पवित्र धर्म ग्रंथ वेद का न पाठ कर सकती थी, न उसे सुन सकती थी। पुरुषों की धन-सम्पत्ति (विरासत) में उसका कोई हिस्सा नहीं था यहाँ तक कि आज भी, जो नारी-अधिकार की गहमा-गहमी और शोर-शराबा का दौर है, कृषि-भूमि में उसके विरासती हिस्से से उसे पूरी तरह वंचित रखा गया है।

नारी जाति की वर्तमान उपलब्धियाँ—

शिक्षा, उन्नति, आज़ादी, प्रगति और आर्थिक व राजनीतिक सशक्तीकरण आदिदृयक़ीनन संतोषजनक, गर्वपूर्ण, प्रशंसनीय व सराहनीय हैं। लेकिन नारी-जाति के हक़ीक़ी ख़ैरख़ाहों, शुभचिंतकों व उद्धारकों पर लाज़िम है कि वे खुले मन-मस्तिष्क से विचार व आकलन करें कि इन उपलब्धियों की क्या, कैसी और कितनी क़ीमत उन्होंने नारी-जाति से वसूल की है तथा स्वयं नारी ने अपनी अस्मिता, मर्यादा, गौरव, गरिमा, सम्मान व नैतिकता के सुनहरे, मूल्यवान सिक्कों से कितनी बड़ी क़ीमत चुकाई है। जो कुछ, जितना कुछ उसने पाया उसके लिए क्या कुछ, कितना कुछ गँवा बैठी। नई तहज़ीब की जिस राह पर वह बड़े जोश व ख़रोश से चल पड़ीद—बल्कि दौड़ पड़ीद—है उस पर कितने काँटे, कितने विषैले व हिंसक जीव-जन्तु, कितने गड्ढे, कितने दलदल, कितने ख़तरे, कितने लुटेरे, कितने राहज़न, कितने धूर्त मौजूद हैं।
आधुनिक सभ्यता और नारी-

--व्यापक अपमान--

*समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं में रोज़ाना औरत के नग्न, अर्धनग्न, लगभग पूर्ण-नग्न अपमानजनक चित्रों का प्रकाशन।

*सौंदर्य-प्रतियोगिता...अब तो ‘‘विशेष अंग प्रतियोगिता’’ भी...तथा फ़ैशन शो/रैम्प शो के ‘कैट वाक’ में अश्लीलता का प्रदर्शन और टी॰वी॰ चैनल्स द्वारा वैश्वीय (Global) प्रसारण।
* कार्पोरेट बिज़नस और सामान्य व्यवपारियों/उत्पादकों द्वारा संचालित विज्ञापन प्रणाली में औरत का ‘बिकाऊ नारीत्व’ (Woomanhood For Sale)।
* सिनेमा, टी॰वी॰ के परदों पर करोड़ों-अरबों लोगों को औरत की अभद्र मुद्राओं में परोसे जाने वाले चलचित्राद—दिन-प्रतिदिन और रात दिन।
* इंटरनेट पर ‘पोर्नसाइट्स’। लाखें वेब-पृष्ठों पर औरत के ‘इस्तेमाल’ के घिनावने, बेहूदा चित्र (जिन्हें देखकर शायद शैतान को भी लज्जा का आभास हो उठे)।
* फ्रेन्डशिप क्लब्स, फोन/मोबाइल फोन सर्विस द्वारा युवतियों से ‘दोस्ती’।

--- यौन अपराध---
● बलात्कार—दो वर्ष की बच्ची से लेकर अस्सी वर्षीया वृद्धा से—ऐसा नैतिक अपराध है जिसकी ख़बरें अख़बारों में पढ़कर समाज के कानों पर जूँ भी नहीं रेंगती, मानो किसी गाड़ी से कुचल कर कोई चुहिया मर गई हो—बस।
● ‘‘सामूहिम बलात्-दुष्कर्म’’ के शब्द इतने आम हो गए हैं कि समाज ने ऐसी दुर्घटनाओं की ख़बर पढ़, सुनकर बेहिसी व बेफ़िकरी का ख़ुद को आदी बन लिया है।
● युवतियों, बालिकाओं, किशोरियों का अपहरण, उनके साथ हवसनाक ज़्यादती—सामूहिक ज़्यादती भी—और फिर हत्या।
● सेक्स माफ़िया द्वारा औरतों के बड़े-बड़े, संगठित कारोबार। यहाँ तक कि परिवार से धुतकारी, समाज से ठुकराई हुई विधवाएँ भी, विधवा-आश्रमों में सुरक्षित नहीं।
● विवाहिता स्त्रियों का पराए पुरुषों से संबंध (Extra Marital Relations), इससे जुड़े अन्य अपराध, हत्याएँ और परिवारों का टूटना-बिखरना।

---यौन-शोषण (Sexual Exploitation)---

● देह व्यापार, गेस्ट हाउसों, बहुतारा होटलों में अपनी ‘सेवाएँ’ अर्पित करने वाली सम्पन्न व अल्ट्रामाडर्न कालगर्ल्स।
● ‘रेड लाइट एरियाज़’ में अपनी सामाजिक बेटियों-बहनों की आबरू की ख़रीद-फ़रोख़्त (क्रय-विक्रय)। वेश्यालयों को समाज व प्रशासन की ओर से मंज़ूरी। सेक्स वर्कर, सेक्स ट्रेड और सेक्स इण्डस्ट्री जैसे ‘आधुनिक’ नामों से नारी-शोषण तंत्र की इज़्ज़त अफ़ज़ाई (Glorification) व सम्मानीकरण।
● नाइट क्लबों और डिस्कॉथेक्स में औरतों व युवतियों के वस्त्रहीन अश्लील डांस।
● हाई सोसाइटी गर्ल्स, बार गर्ल्स के रूप में नारी-यौवन व सौंदर्य की शर्मनाक दुर्गति।


---औरतों पर पारिवारिक यौन-अत्याचार व अन्य ज़्यादतियाँ---


● बाप-बेटी, भाई-बहन के पवित्र, पाकीज़ा रिश्ते भी अपमानित।
● जायज़ों के अनुसार बलात् दुष्कर्म के लगभग पचास, प्रतिशत मामलों में निकट संबंधी मुलव्वस (Incest)।
●  दहेज़-संबंधित अत्याचार व उत्पीड़न। जलाने, हत्या कर देने, आत्महत्या पर मजबूर कर देने, सताने, बदसलूकी करने, मानसिक यातना देने, अपमानित व प्रताड़ित करने के नाक़ाबिले शुमार वाक़ियात। 
● दहेज़ पर भारी-भारी रक़में और शादी के अत्यधिक ख़र्चों के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन न होने के कारण अनेकानेक युवतियाँ शादी से वंचित, मानसिक रोग की शिकार, आत्महत्या। कभी माता-पिता को शादी के ख़र्च के बोझ तले पिसते देखना सहन न कर सकने से कई-कई बहनों की एक साथ ख़ुदकुशी।

--कन्या भ्रूण-हत्या (Female Foeticide) और कन्या-वध (Female Infanticide)--


● बच्ची का क़त्ल, उसके पैदा होने से पहले माँ के पेट में ही। कारण : दहेज़ व विवाह का क्रूर निर्दयी शोषण-तंत्र।
● पूर्वी भारत के एक इलाक़े में रिवाज़ है कि अगर लड़की पैदा हुई तो पहले से तयशुदा ‘फीस’ के एवज़ दाई उसकी गर्दन मरोड़ देगी और घूरे में दबा आएगी। कारण? वही...‘दहेज़ और शादी के नाक़ाबिले बर्दाश्त ख़र्चे।’ कन्या-वध (Female Infanticide) के इस रिवाज के प्रति नारी-सम्मान के ध्वजावाहकों की उदासीनता (Indiference)।


--सहमति यौन-क्रिया (Fornication)--


● अविवाहित रूप से नारी-पुरुष के बीच पति-पत्नी का संबंध (Live in Relation)। पाश्चात्य सभ्यता का ताज़ा तोहफ़ा। स्त्री का ‘सम्मानपूर्ण’ अपमान।
● स्त्री के नैतिक अस्तित्व के इस विघटन से न क़ानून को कुछ लेना-देना, न नारी जाति के ‘शुभ-चिंतकों’ को, न पूर्वीय सभ्यता के गुणगायकों को, और न ही नारी-स्वतंत्रता आन्दोलन (Women Liberation Movement) की पुरजोश कार्यकर्ताओं (Activists) को।
● ससहमति अनैतिक यौन-क्रिया (Consensual Sex) की अनैतिकता को मानव-अधिकार (Human Right) नामक ‘नैतिकता’ का मक़ाम हासिल। क़नून इसे ग़लत नहीं मानता, यहाँ तक कि उस अनैतिक यौन-आचार (Incest) को भी क़ानूनी मान्यता प्राप्ति जो आपसी  सहमति से बाप-बेटी, भाई-बहन, माँ-बेटा, दादा-पोती, नाना-नतिनी आदि के बीच घटित हो।

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